तन्मुखं तु महातीर्थ तन्मुखं क्षेत्रमेव च ।
यन्मुखे राम रामेति तन्मुखं सार्वकामिकं ||
(-पद्म-पुराण , उत्तरखण्ड ७१/३४ )
जिस मुख में राम - राम का जाप होता रहता है वह मुख ही महान तीर्थ है, वह मुख हीं प्रधान क्षेत्र है तथा वही सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला है |
यन्मुखे राम रामेति तन्मुखं सार्वकामिकं ||
(-पद्म-पुराण , उत्तरखण्ड ७१/३४ )
जिस मुख में राम - राम का जाप होता रहता है वह मुख ही महान तीर्थ है, वह मुख हीं प्रधान क्षेत्र है तथा वही सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला है |
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