Wednesday, March 14, 2012

श्रीपद्मपुराण



सर्वेषां वेदशास्त्राणां रहस्यंतेप्रकाशितम् ।
एको देवो रामचंद्रो व्रतं एको तदर्चनम् ।
मंत्रोऽप्येकश्च तन्नाम शास्त्रं तद् ध्येवतत्स्तुतिः ।।
तस्मात् सर्वात्मना रामचंद्रंभजमनोहरम् ।
यथा गोष्पवदवत्तुच्छो भवेत् संसारसागरः ।।

(- श्रीपद्मपुराण , पातालखण्ड ३५।५१ - ५२ )


सभी वेदों और शास्त्रों में यही रहस्य प्रकाशित है कि -
हम मनुष्यों के लिए एक हीं भगवान हों - प्रभु श्री रामचंद्र;
एक हीं व्रत हों - प्रभु राम का अर्चन
एक हीं मंत्र हों - उनका नाम ( अर्थात 'राम' )
और एक हीं शास्त्र हों - जहाँ उनकी स्तुति हो (अर्थात 'रामायण')
इसलिए सभी मनुष्यों को श्री राम का परम मनोहर भजन करना चाहिए यदि वो इस संसार सागर को गौ के पग (गो-पद) के सामान लाँघ जाना चाहते हैं तो |

All Veda-s and scriptures reveal the mystery in one voice for all human-beings,
Let there be only one God for whole world - Śrī Rāma;
(why? because Rama alone is the supreme)
Only one religious vow - worship of Śrī Rāma, alone;
Only one hymn (Mantra) for prayer - Śrī Rāma's name i.e. 'Rāma' Naam;
and Only one scripture - where Śrī Rāma's exploits are sung i.e. Rāmāyanam;
if we are eager to cross the ocean of mundane existence just like mere crossing a foot-print of cow. Hence we, human-beings should always sing and chant the name of Supreme Lord Rama, the prince charming of Ayodhya. (Padma-Purana, 5.35.51-52)

                                                                   !! राम राम !!

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